जयपाल सिंह मुंडा ।। जयपाल सिंह मुंडा: सविधान सभा में आदिवासियों की बुलंद आवाज || जानें इंडिया को ओलंपिक

 

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Jharkhand: जानें इंडिया को ओलंपिक में पहला गोल्ड दिलाने वाले जयपाल सिंह मुंडा की कहानी, हॉकी के लिए छोड़ दी थी सरकारी नौकरी


Updated at: 1 December 2022 04:05 PM 


Ranchi News: जयपाल सिंह मुंडा अंग्रेजी हुकूमत में सबसे बड़ी नौकरी ICS के लिए चुने गए थे. लेकिन, हॉकी के लिए उनका जुनून ऐसा था कि उन्होंने नौकरी छोड़ दी. उनकी कप्तानी में देश को पहला गोल्ड मिला था. 
Jharkhand: जानें इंडिया को ओलंपिक में पहला गोल्ड दिलाने वाले जयपाल सिंह मुंडा की कहानी, हॉकी के लिए छोड़ दी थी सरकारी नौकरी

झारखंड हॉकी एकेडमी

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Jharkhand Jaipal Singh Munda Hockey Academy: 1928 में एम्सटर्डम में आयोजित ओलंपिक (Olympics) में देश को पहली बार गोल्ड जिताने वाली इंडियन हॉकी टीम के कप्तान जयपाल सिंह मुंडा (Jaipal Singh Munda) के पैतृक गांव टकरा में हॉकी (Hockey) प्रतिभाओं को तराशने की एक बड़ी सामुदायिक पहल हुई है. स्वर्गीय जयपाल सिंह मुंडा के परिजनों की पहल पर यहां एक बड़ी हॉकी एकेडमी (Hockey Academy) की योजना आकार ले रही है. उनके पुत्र जयंत जयपाल सिंह मुंडा ने इसके लिए गांव में 60 एकड़ पैतृक जमीन दे दी है. एकेडमी की अनौपचारिक शुरुआत भी हो चुकी है और यहां इन दिनों 40 लड़के-लड़कियों को पूर्व ओलंपयिन और इंटरनेशनल प्लेयर्स की देखरेख में ट्रेनिंग दी जा रही है.


ऐसा था हॉकी के लिए जुनून 
केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा ने भी एकेडमी के लिए सरकारी सहायता का भरोसा दिलाया है. टकरा गांव रांची से लगभग 50 किलोमीटर दूर खूंटी जिले में स्थित है. इसी गांव में जन्मे जयपाल सिंह मुंडा अंग्रेजी हुकूमत में सबसे बड़ी नौकरी आईसीएस के लिए चुने गए थे, लेकिन हॉकी के लिए उनका जुनून ऐसा था कि उन्होंने आईसीएस छोड़ दी थी. उनकी ही कप्तानी में इंडियन टीम ने आज से 94 साल पहले देश को पहला ओलंपिक गोल्ड दिलाया था. बाद में वो देश में आदिवासियों के सबसे बड़े राजनेता के तौर पर उभरे. संविधान सभा से लेकर संसद तक के लिए चुने गए. अब उनके गांव में उनकी ही पैतृक जमीन पर हॉकी एकेडमी बनाकर उनकी स्मृतियों को सहेजने और नई प्रतिभाओं को मुकाम देने की कोशिश शुरू हुई है.



ये है योजना 


योजना ये है कि इस एकेडमी को आवासीय ट्रेनिंग सेंटर के तौर पर विकसित किया जाएगा, जिसमें कुल 200 लड़के-लड़कियों को रखकर उन्हें हॉकी प्लेयर के तौर पर तराशा जाएगा. यहां उनकी नियमित पढ़ाई-लिखाई की भी व्यवस्था रहेगी. फिलहाल, डे बोर्डिंग एकेडमी के लिए 30 लड़कियों और 10 लड़कों को प्रशिक्षण देने की शुरुआत हो चुकी है. इन सभी को झारखंड के विभिन्न इलाकों में ट्रायल और टैलेंट हंट के जरिए चुना गया है. कई कंपनियों और संस्थाओं ने सहयोग के लिए हामी भरी है. टाइल्स बनाने वाली एक बड़ी कंपनी डे बोर्डिंग सेंटर में ट्रेनिंग कर रहे लड़के-लड़कियों के लिए भोजन की व्यवस्था प्रायोजित की है.
झारखंड में है हॉकी का क्रेज 
पूर्व ओलंपियन हॉकी प्लेयर मनोहर टोपनो एकेडमी के संचालन के लिए बनाई गई कमेटी के चेयरपर्सन बनाए गए हैं, जबकि जयपाल सिंह मुंडा के पुत्र जयंत जयपाल सिंह मुंडा सचिव हैं. एकेडमी में इंटरनेशनल हॉकी प्लेयर रहीं सावित्री पूर्ति, सुमराय टेटे और भारतीय महिला हॉकी टीम की पूर्व कैप्टन असुंता लकड़ा भी शामिल हैं. रांची स्थित साई ट्रेनिंग सेंटर के प्रशिक्षक जगन टोपनो, मेकॉन रांची के पूर्व हॉकी प्रशिक्षक एलेक्स लकड़ा, पूर्व अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी विश्वास पूर्ति, कांति बा एवं कई खिलाड़ी चुनी गई प्रतिभाओं को तराशने के इस अभियान में सहभागी हैं. कमेटी के चेयरपर्सन मनोहर टोपनो कहते हैं कि झारखंड के खूंटी, सिमडेगा, गुमला सहित कई इलाकों में गांव-गांव में हॉकी खेली जाती है. उभरते खिलाड़ियों को शुरुआत से बेहतरीन ट्रेनिंग देना एकेडमी का लक्ष्य है. उम्मीद है कि केंद्र और राज्य सरकार की ओर से भी हमें इसमें मदद मिलेगी.

Published at: 13 December 2022 04:05 PM 


Thetribsnews

जयपाल सिंह मुंडा

 (3 जनवरी 1903 – 20 मार्च 1970) भारतीय आदिवासियों और झारखंड आंदोलन के एक सर्वोच्च नेता थे। वे एक जाने माने राजनीतिज्ञ, पत्रकार, लेखक, संपादक, शिक्षाविद् और 1925 में ‘ऑक्सफोर्ड ब्लू’ का खिताब पाने वाले हॉकी के एकमात्र अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी थे। उनकी कप्तानी में 1928 के ओलिंपिक में भारत ने पहला स्वर्ण पदक प्राप्त किया। ओपनिवेशिक भारत में जयपाल सिंह मुंडा सर्वोच्च सरकारी पद पर थे 


https://www.thetribsnews.online/2022/12/blog-post_13.html
जयपाल सिंह मुंडा
   


व्यक्तिगत जानकारी

जन्म _०३ जनवरी १९०३

Takra Pahantoli, रांची, बिहार प्रान्त

(अब झारखण्ड), भारत[1]

मृत्यु_20 मार्च 1970 (उम्र 67)

नई दिल्ली, भारत

पदक की जानकारी _Men's Field Hockey

साँचा:Flaglink के प्रत्याशी

Olympic Games

स्वर्ण 1928 Amsterdam Team Competition

जीवन यात्रा

जयपाल सिंह छोटा नागपुर (अब झारखंड) राज्य की मुंडा जनजाति के थे। मिशनरीज की मदद से वह ऑक्सफोर्ड के सेंट जॉन्स कॉलेज में पढ़ने के लिए गए। वह असाधारण रूप से प्रतिभाशाली थे। उन्होंने पढ़ाई के अलावा खेलकूद, जिनमें हॉकी प्रमुख था, के अलावा वाद-विवाद में खूब नाम कमाया।


उनका चयन भारतीय सिविल सेवा (आईसीएस) में हो गया था। आईसीएस का उनका प्रशिक्षण प्रभावित हुआ क्योंकि वह 1928 में एम्सटरडम में ओलंपिक हॉकी में पहला स्वर्णपदक जीतने वाली भारतीय टीम के कप्तान के रूप में नीदरलैंड चले गए थे। वापसी पर उनसे आईसीएस का एक वर्ष का प्रशिक्षण दोबारा पूरा करने को कहा गया, उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया।


उन्होंने बिहार के शिक्षा जगत में योगदान देने के लिए तत्कालीन बिहार कांग्रेस अध्यक्ष डा. राजेन्द्र प्रसाद को इस संबंध में पत्र लिखा. परंतु उन्हें कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला. 1938 की आखिरी महीने में जयपाल ने पटना और रांची का दौरा किया. इसी दौरे के दौरान आदिवासियों की खराब हालत देखकर उन्होंने राजनीति में आने का फैसला किया.


1938 जनवरी में उन्होंने आदिवासी महासभा की अध्यक्षता ग्रहण की जिसने बिहार से इतर एक अलग झारखंड राज्य की स्थापना की मांग की। इसके बाद जयपाल सिंह देश में आदिवासियों के अधिकारों की आवाज बन गए। उनके जीवन का सबसे बेहतरीन समय तब आया जब उन्होंने संविधान सभा में बेहद वाकपटुता से देश की आदिवासियों के बारे में सकारात्मक ढंग से अपनी बात रखी। संविधान सभा में 'अनुसूचित जनजाति' की जगह आदिवासियों को 'मूलवासी आदिवासी' करने की बात कही।

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