पुण्यतिथि विशेष: आदिवासी लड़ाका यू कियांग नांगबा
Updated: Thetribsnews
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने 19वीं सदी के मध्य में जैंतिया साम्राज्य को असम प्रांत का हिस्सा बना लिया. 1860 के अंत तक वहां के लोगों पर हाउस-टैक्स के अलावा आयकर भी लगाया गया. आशंका थी कि पान और सुपारी पर भी टैक्स लगाया जाएगा. मनमाने करों के लागू होने से जैंतिया समुदाय में आक्रोश पैदा हुआ और 1862 में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ एक भयंकर विद्रोह शुरू हुआ.
यू कियांग नांगबा जैंतिया आदिवासियों के स्वतंत्रता सेनानी थे. एक किसान के रूप में वे अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए दृढसंकल्पित थे. अनुचित कर और धार्मिक परंपराओं को तोड़े जाने
के विरुद्ध उन्होंने जैंतिया आदिवासियों को संगठित किया और अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति का नेतृत्व किया. हालांकि उनके ही दल के एक सदस्य ने उन्हें धोखा दिया, जिसके बाद उन्हें अंग्रेजों द्वारा पकड़ लिया गया और वर्तमान मेघालय के जोवई शहर के लॉमुसियांग में यू कियांग नांगबा को सार्वजनिक रूप से फांसी दे दी गई.
मेघालय सरकार ने नांगबा के शहादत दिवस 30 दिसंबर को राजकीय अवकाश घोषित कर उन्हें सम्मानित किया. 1967 में उनके सम्मान में जोवाई शहर में एक सरकारी कॉलेज खोला गया. 2001 में सरकार द्वारा उनके नाम पर एक डाक टिकट भी जारी किया गया.
मेघालय के जयंतियापुर क्षेत्र के वन्यक्षेत्र से संबंध रखने वाले यू कियांग नोंगबा आदिवासी समुदाय के क्रांतिकारी नायक थे। वर्ष 1835 में अंग्रेजों द्वारा जैतिया के राज्य का अधिग्रहण किए जाने के उपरांत, यू कियांग ने विदेशी औपनिवेशिक कंपनी के विरुद्ध स्थानीय आदिवासियों की एक गुरिल्ला सेना बनाई, आदिवासियों की इस सेना ने गुरिल्ला युद्ध पद्धति से ब्रिटिश सैनिकों को लगातार 20 महीनों तक खूब छकाया और अपनी युद्ध क्षमता से उन्हें नाको चने चबवा दिए। हालांकि अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए संघर्ष करने वाले इस महान नायक को एक गद्दार साथी की सूचना पर अंततः अंग्रेजों ने पकड़ लिया और 30 दिसंबर, 1862 को महान क्रांतिकारी कियांग को जयंतिया हिल्स जिले के जोवाई शहर के रावमुसियांग में सार्वजनिक रूप से फांसी दे दी गई।
कियांग नोंगबा का जन्म यू जोवाई के टप्पले के रिमाई नांगवाह में हुआ था जो मेघालय की पहाड़ियों में रहने वाली खासी और जयंती आदिवासी से संबंध रखते थे, 18वीं शताब्दी तक ये आदिवासी मूलतःस्वतंत्र थीं, जहां ब्रिटिश शासन नहीं पहुंचा था, जिस क्षेत्र में ये आदिवासी निवासरत थी उसमें आज कई छोटे छोटे क्षेत्र शामिल हैं, जिनमें कुछ क्षेत्र वर्तमान के बांग्लादेश और सिलचर में है। इन्हीं क्षेत्रो में से एक है जैतियापुर जहां उस कालखंड में आदिवासी समुदाय बड़ी संख्या में निवासरत हुआ करता था, समुदाय की एकता को तोड़ना आसान नहीं था, इसलिए अंग्रेजों ने अपनी कुख्यात नीति के तहत जैतियापुर को पहाड़ी और समतल क्षेत्रों में बांट कर प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयास किया, इसके साथ ही अंग्रेजो ने गरीब आदिवासी को लालच और भय दिखाकर उन्हें अपने वश में करके धर्मांतरण शुरू कर दिया। वहीं अंग्रेजों के भौगोलिक विभाजन को राज्य के शासकों ने डर के मारे स्वीकार कर लिया था हालांकि राजा का यह निर्णय जनता को स्वीकार नहीं था।
वर्ष 1835 आते आते अंग्रेजों ने जैतिया के पूरे राज्य पर कब्जा कर लिया। यू कियांग नोंगबा उस समय युवा थे, बावजूद उसके उन्होंने आदिवासी के उत्पीड़न और शोषण को समाप्त करने के लिए एक प्रतीकात्मक योजना तैयार की, उन्होंने अंग्रेजों से संघर्ष के लिए सेना का गठन किया, यू कियांग नोंगबा बांसुरी बजाते और लोक गीत गाते जिससे आदिवासियों को तीर और तलवार चलाने के लिए प्रेरणा मिलती उनकी बांसुरी की एक हेक पर बड़ी संख्या मेंआदिवासी एकत्रित हो जाते और अंग्रेजो के विरुद्ध संगठित होकर प्रतिकार करते।
यू कियांग नोंगबा ने सात ब्रिटिश सैन्य ठिकानों पर हमला करने की योजना बनाई इन सात ठिकानों को लक्षित कर के आदिवासी का गुरिल्ला युद्ध करीब 20 महीने तक चला, लेकिन प्रत्येक बार अंग्रेज उन्हें पकड़ नहीं पाए। अंततः अपनी विफलता से परेशान अंग्रेजों ने अपनी प्रवृत्ति के अनुसार यू कियांग नोंगबा को पकड़ने का षड्यंत्र रचा और कियांग के साथी उडोलोई को लालच देकर अपने साथ मिला लिया।
इसी दौरान यू कियांग नोंगबाला अंग्रेजो के विरुद्ध संघर्ष में गंभीर रूप से घायल हो गए थे और उन्हें इलाज के लिए मुंशी गांव ले जाया गया था। इसकी जानकारी देशद्रोही उदोलोई ने अंग्रेजों को दे दी। अंग्रेजों ने घायल यू कियांग नोंगबा को पकड़ लिया और उन्हें अपने साथ मिलाने का प्रस्ताव रखा हालांकि महान क्रांतिकारी नोंगबा ने इसे दृढ़ता से ठुकरा दिया, अंततः उन्हें 30 दिसंबर, 1862 को पश्चिम जयंती हिल्स जिले के जोवाई शहर के इवामुसियांग में सार्वजनिक रूप से फांसी दे दी गई, अंग्रेजो ने कियांग को फांसी दे दी पर जीवनपर्यंत उन्हें झुकाने में विफल रहे, मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राणों का बलिदान देने वाले इस महान क्रांतिकारी को आज भी स्थानीय जनजातीय समुदाय द्वारा अपना प्रेरणा पुरुष माना जाता है।