सावित्रीबाई फुले का जीवन परिचय | Savitribai Phule Biography in Hindi


समाज सेवक सावित्रीबाई फुले की जीवनी, महिला शिक्षा में योगदान और मृत्यु | Savitribai Phule Biography, Role in Woman Education and Death Story in Hindi

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सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले (Savitribai Jyotirao Phule) एक प्रमुख भारतीय सामाजिक सुधारक, शिक्षाविद और कवियत्री थी. जिन्होंने उन्नीसवीं शताब्दी के दौरान महिला शिक्षा और सशक्तिकरण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उन्हें उस समय की कुछ साक्षर महिलाओं में गिना जाता है. सावित्रीबाई को पुणे में अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ भिडवाडा में स्कूल स्थापित करने के लिए श्रेय दिया जाता है. उन्होंने बाल विवाह के प्रति शिक्षित करने और उन्मूलन करने, सती प्रथा के खिलाफ प्रचार करने और विधवा पुनर्विवाह के लिए वकालात करने के लिए बहुत मेहनत की. महाराष्ट्र के सामाजिक सुधार आंदोलन का एक प्रमुख व्यक्तित्व और उन्हें बी आर अम्बेडकर, अन्नाभाऊ साठे की पसंद के साथ दलित मंगल जाति का प्रतीक माना जाता है. उन्होंने अस्पृश्यता (Untouchability) के खिलाफ अभियान चलाया और जाति व लिंग आधारित भेदभाव को समाप्त करने में सक्रिय रूप से काम किया.


बिंदु(Points) जानकारी (Information)

नाम (Name) सावित्रीबाई फुले

जन्म (Birth) 3 जनवरी, 1831

मृत्यु (Death) 10 मार्च 1897

जन्म स्थान (Birth Place) सातारा जिला

कार्यक्षेत्र (Profession) समाज सेवक

पिता का नाम (Father Name) खांडोजी नेवेशे पाटिल

पति का नाम(Husband Name) ज्योतिराव फुले 


सावित्रीबाई फुले का प्रारंभिक जीवन (Savitribai Phule Early Life)


सावित्रीबाई का जन्म 3 जनवरी, 1831 को नायगांव (वर्तमान में सातारा जिले में) में कृषि परिवार में हुआ था. इनके पिता का नाम खंडोजी नेवसे पाटील और माता का नाम लक्ष्मी था. वे परिवार की सबसे बड़ी बेटी थी. उन दिनों की लड़कियों का जल्दी ही विवाह कर दिया जाता था, इसलिए प्रचलित रीति-रिवाजों के बाद नौ वर्षीय सावित्रीबाई की शादी 1840 में 12 वर्षीय ज्योतिराव फुले से साथ हुई. ज्योतिराव एक विचारक, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता और जाति-विरोधी सामाजिक सुधारक थे. उन्हें महाराष्ट्र के सामाजिक सुधार आंदोलन के प्रमुख आंदोलनकारियों में गिना जाता है. सावित्रीबाई की शिक्षा उनकी शादी के बाद शुरू हुई. यह उनके पति ही थे जिसने सावित्रीबाई को सीखने और लिखने के लिए प्रोत्साहित किया. उन्होंने एक सामान्य स्कूल से तीसरी और चौथी की परीक्षा पास की. जिसके बाद उन्होंने अहमदनगर में मिस फरार इंस्टीट्यूशन (Ms Farar’s Institution) में प्रशिक्षण लिया. ज्योतिराव अपने सभी सामाजिक प्रयासों में सावित्रीबाई के पक्ष में दृढ़ता से खड़े रहते थे.


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महिला शिक्षा और सशक्तिकरण में भूमिका (Role of Savitribai Phule in Woman Education and Empowerment)


ऊपरी जाति, जो दलित शिक्षा के खिलाफ थे. सावित्रीबाई और फातिमा शेख को स्थानीय लोगों ने धमकी दी थी और उन्हें सामाजिक रूप से परेशान और अपमानित किया गया था. जब वह स्कूल की ओर चली गई तो सावित्रीबाई पर गाय का गोबर, मिट्टी और पत्थरों को फेंका गया. हालांकि इस तरह के अत्याचार अपने लक्ष्य से निर्धारित सावित्रीबाई को हतोत्साहित नहीं कर सके और सावित्रीबाई और फातिमा शेख बाद में सगुना बाई से जुड़ गए जो अंततः शिक्षा आंदोलन में अग्रणी बनी. इस बीच, 1855 में फुले जोड़े द्वारा कृषिविद और मजदूरों के लिए एक रात्रि विद्यालय भी खोला गया ताकि वे दिन में काम कर सकें और रात में स्कूल में जा सकें.

बनाकर मुख्यधारा में लाने का भी प्रयास किया और उनके पुनः विवाह की वकालत की. इस तरह की खोज रूढ़िवादी उच्च जाति के समाज से मजबूत प्रतिरोध के साथ भी हुई.


सावित्रीबाई ने छुआछूत और जाति प्रथा के उन्मूलन में अपने पति के साथ मिलकर काम किया. जो निचली जातियों के लोगों के लिए समान अधिकारों को प्राप्त करने और हिंदू पारिवारिक जीवन में सुधार के लिए काम किया. दंपति ने एक युग के दौरान अछूतों के लिए अपने घर में एक कुआँ खोला जब एक अछूत की छाया को अशुद्ध माना जाता था और लोग प्यासे अछूतों को पानी की पेशकश करने के लिए अनिच्छुक थे

सावित्रीबाई फुले की मृत्यु (Savitribai Phule Death

सावित्रीबाई के दत्तक पुत्र यशवंतराव ने एक डॉक्टर के रूप में लोगों की सेवा करना शुरू किया. जब 1897 में बुलेसोनिक प्लेग महामारी ने नालसपोरा और महाराष्ट्र के आसपास के इलाके को बुरी तरह प्रभावित किया, तो साहसी सावित्रीबाई और यशवंतराव ने बीमारी से संक्रमित रोगियों का इलाज करने के लिए पुणे के बाहरी इलाके में एक क्लिनिक खोला. वह इस महामारी से पीड़ितो को क्लीनिक में ले आती जहाँ उनका बेटा उन रोगियों का इलाज करता था. रोगियों की सेवा करते हुए वह खुद भी इस बीमारी की चपेट में आ गयी. 10 मार्च 1897 को सावित्रीबाई का निधन हो गया.


समाज की सदियों पुरानी बुराइयों पर अंकुश लगाने और उसके द्वारा छोड़ी गई अच्छी सुधारों की समृद्ध विरासत में सावित्रीबाई का अथक प्रयास पीढ़ियों को प्रेरित करता है. 1983 में पुणे सिटी कॉरपोरेशन द्वारा उनके सम्मान में एक स्मारक बनाया गया था. इंडिया पोस्ट ने 10 मार्च 1998 को उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया था. 2015 में पुणे विश्वविद्यालय का नाम बदलकर उनके नाम पर सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय कर दिया गया था. सर्च इंजन गूगल ने 3 जनवरी 2017 को गूगल डूडल के साथ उनकी 186 वीं जयंती मनाई थी.

सावित्रीबाई फुले पुरस्कार महाराष्ट्र में महिला समाज सुधारकों को प्रदान किया जाता है.

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